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विशिष्टताओं ने ही उन्हें विशिष्ट स्थान प्राप्त करवाया था । विद्वान् ब्राह्मण वर्ग से उतरा दर्जा क्षत्रियों को मिला, इसका कारण ब्राह्मण नहीं पर क्षत्रिय स्वयं थे, क्यों कि क्षत्रिय ब्राह्मणों को गुरु मान कर अपने ऐहिक तथा पारलौकिक हितकारी कार्यों के सम्बन्ध में ब्राह्मणों की सलाह लेते और वे उनको धार्मिक तथा व्यावहारिक मार्ग बताते और उन मार्गों पर चलने का उपदेश देते, इस प्रकार ज्ञान बल से ही ब्राह्मणों ने मानव समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने अपनी जाति को ज्ञान प्राप्ति और सदाचरण में अग्रसर होने की हमेशा प्रेरणा को है । जातिमात्र से उच्च बन कर समाज के अगुआ बनने की विद्वान् ब्राह्मणों ने कभी हिमायत नहीं की, प्रत्युत ज्ञान तथा सदाचारादि गुण विहीन ब्राह्मणों को फटकारा अवश्य है। जिन्होंने वैदिक-धर्म के सूत्र स्मृत्यादि ग्रन्थों का अध्ययन किया है वे तो यही कहेंगे कि ब्राह्मणों ने पोल चलाने और इतर जन समाज को ठगने की कभी प्रवृत्ति नहीं की। इस सम्बन्ध में ब्राह्मण ग्रन्थों के कुछ उद्धरण देकर इस विषय । पर हम प्रकाश डालेंगे।
वसिष्ठधर्म शास्त्र में ब्राह्मण लक्षण “योगस्तपो दमो दानं सत्यं शौचं श्रुतं घृणा । विद्या विज्ञान मास्तिक्यमेतद् ब्राह्मणलक्षणम् ॥२१॥
"वसिष्ठ धर्मशास्त्र"