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शरीर व्युत्सर्जन स्थान से जिस दिशा में खींचा हुआ अखण्डित शव दीखे उस दिशा में शास्त्र जानने वाले विद्वान् निरुपद्रवता और सुभिक्षता बताते हैं ।
एत्थ यथल करणे विमाणियो जोइसियो वाणमंतर समंमि । गड्डाए भवणवासी एस गई से समासे ॥ ६३ ॥
अर्थः- मृतक शरीर का जिस स्थल में उससे ऊँचे भूमि भाग में दूसरे दिन पड़ा वाला वैमानिक अथवा ज्योतिष्क देवों की समझा जाता है । यदि वह निम्न गडु में पड़ा हुआ दीखे तो उसका जीव भवन - पति देवों के निकाय में उत्पन्न हुआ माना जाता है, और शरीर व्युत्सर्जन स्थान के समतल भूमि भाग में पाया जाय तो वह वानमन्तर देवों के निकाय में उत्पन्न हुआ, ऐसा माना जाता है ।
व्युत्सर्जन किया है, पाया जाय तो मरने
गति में गया, ऐसा
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जैन श्रमण के विषय में बहुत कुछ लिखा जा सकता है, स्नातक आदि पाँच प्रकार के श्रमणों का निरूपण, पारिहारिक यदि तपः साधकों का विवेचन आदि, बहुत से विषय हमने छोड़ दिये हैं, क्योंकि जैन श्रमण के सम्बन्ध की सभी बातें लिखने से यह एक अध्याय ही एक बड़ा ग्रन्थ बन जाता और ग्रंथ के एक अध्याय अथवा एक खण्ड में अतिविस्तार करना उचित नहीं माना
जाता ।
मैं आशा करता हूँ जैन श्रमण के सम्बन्ध में जो कुछ ऊपर