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________________ ( २६६ ) ". ४२. श्रमण सर्व प्रकार के आक्रोश वधादि को पृथ्वी की तरह सहन करता है। ४३. वह निस्नेह और सत्कार पुरस्कार की इच्छा का त्यागी होता है। ४४. वह ऐसा वचन कभी नहीं बोलता जिसके सुनने से दूसरे को दुःख हो। ___४५. श्रमण अपनी जाति, रूप, ज्ञान, आदि का अहंकार नहीं करता है। ४६. वह श्रामण्य स्वीकार दिन से मनसा, वाचा, कर्मणा, ब्रह्मचारी होता है। ... ४७. वह स्वयं धर्म में दृढ़ रहता हुआ, आर्य वचनों द्वारा अन्य मनुष्य को धर्म में जोड़ा करता है। - ४८. वह अपने इस अशाश्वत जीवन पर आस्थावान् नहीं . होता, और मरण के लिये सदा तैयार रहता है। ४६. वह अपने जीवन का अन्त निकट आने पर अन्य प्रवृत्तियों को छोडकर अनशन करके अहंदु देव के ध्यान में लीन हो कर शरीर का त्याग करता है। ....... .. श्रमण जीवन के अगणित नियमों में से थोड़े से स्थूल नियम ऊपर लिखे हैं, इनके पढने से पाचक गण को यह ज्ञात हो जायगा कि जैन श्रमण का जीवन कितना अहिंसक, निरीह. और आत्मलक्षी होता था और होता है।
SR No.022991
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherKalyanvijay Shastra Sangraha Samiti
Publication Year1961
Total Pages556
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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