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( २७१ ) हो, जिसमें अस्थि (गुठली) हो, कणुक (छिलके आदि ) और बीज आदि हो. उसे गृहस्थ वांस की टोकरी से वस्त्र से अथवा बालों से बनाये हुए छानने के उपकरण द्वारा उनको मसल कर चारों ओर से दबा कर छान के दे तो अन्य प्रासुक जल की प्राप्ति होती हो तो वैसा अप्रासुक पानी न ले ।
पानी पीने सम्बन्धी नियम दश वैकालिक तथा आचाराङ्ग सूत्र के आधार पर हमने साधु. ओं के ग्राह्य जलों का वर्णन ऊपर दिया है, अब हम यह दिखायेंगे कि किस प्रकार का जल किस प्रकार की तपस्या करने वाले साधु के काम में आता था।
वासावासं पजोस वियस्स निच्च भक्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वाइं पाणगाइ पडिगाहित्तए वासावासं पज्जोस विदस्स चउत्थ भक्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तो पाणगाई पडिगाहित्तए तं जहा___ ओसे इमं संसे इमं चाउलोदकं वासावासं पज्जोस वियस्स छट्ठ भक्त्यिस्स भिक्खुस्स कप्पंति तो पाणगाई पडिगाहित्तए । तं जहा-तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा, वासावासं पज्जोस वियस्स अट्ठम भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तो प्राण गाईपडिगाहित्तए, तं जहा-आयामे वा, सोवीरे वा, सुद्ध वियडे वा, वासावासं पज्जोस वियस्स विगिठ्ठ भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिण वियडे पडिगाहित्तए सेऽवियणं असित्थे, नो वियणं ससित्थे वासावासं पज्जोस वियस्स भत्तपडिया इक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे