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( २६६ ) ऊपर लिखे अनुसार शालिग्राम निघण्टु भूषण में सौंवीर यवोदक और तुषोदक का लक्षण बताया हैं।
भाव प्रकाश निघण्टु में सौवीर की बनावट और उसके गुणों का दिग्दर्शन कराया गया हैं
सौवीरं तु यवैरामैः, पक्का निस्तुषैः कृतं । गोधूमैरपि सौवीरमाचार्याः केचिदूचिरे ॥८॥ सौवीरं तु ग्रहण्यर्शः कफघ्नं भेदि दीपनम् ।
उदावाङ्गमर्दास्थिशूलानाहेषु शस्यते ॥६॥ अर्थ-सौवीर छीले हुए कच्चे अथवा पके यवों से बनाया जाता है, कितने प्राचार्य गोधूमों से भी सौवीर बनाने की बात कहते हैं।
सौवीर संग्रहणी अर्श और कफ का नाश करने वाला है, दस्तावर और जठराग्नि को दीप्त करने वाला है, उदावत (प्रांतों की वायु का ऊपर चढ़ना ) अंगमर्द, ( शरीर का फूटना) अस्थि भूल ( हड्डियों में . तीव्र पीड़ा ) होना और पानाह (अफरा चढ़ना) इन रोगों में लाभ कारक
वृहत्कल्प की टीका में सुरा और सौवीर का लक्षण नीचे अनुसार लिखा है
टीका-ब्रीह्यादि सम्बन्धिना पिष्ट न यद् विकटं भवति सा सुरा यत्तु पिष्टवजितम् द्राक्षा खजूरादिभिनिष्पाद्यते तन्मद्य सौवीरकं जानीयात् ।।
३. से भिक्खू वा सेज पुण पाण गजायं जाणिज्जा, तं जहा अंब पाणं १० वा, अंबाउग पाणं ११ वा, कबिहपाणं १२, माउ