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"भवे कारणं आह । रिज्झावि । गिलारणार आयरिय बालबुड्ढ दुब्बल संघयणाणं गच्छो वग्गहण ठयाए । धिपिज्जा अहवासड्डा निबन्धेणं निमंतंति पसत्थाहिं बिगइहिं ।
पसत्थ विगह गहणं गरहिय विगहग्गहोय कज्भमि । गर हियलाभषमाणे पव्वय पावा पडिया ||
ताहे जाओ असंचइयाओ खीर दहि उगाहि भगाणिय तांउ संचयइयाउ धिप्पति, संचइयाओ न घिप्पंति, घय तिल्लगुल नवणीयाईणि पत्था, तेर्सि खए जाए एयाहिं कज्जं भवइ जया कज्जं भविस्सति, गिरहीहामो ।
बालाई बाल गिलाण वुट्ट सेहाण्य बहूरिए कज्जाणि उप्पज्जंति, महतोय कालो अच्छइ ताहे सड़ा तं भांति जाव तुष्भे समुद्दिसह ताव अत्थि चत्तारि वि मासा ताहे नाउरण गेरहंति, जइणा ए संचयंपि ताहे घे पइ, जहा तेर्सि सढाणं सद्धा वढाइ, अविच्छिन्न भावे चैव मन्नइ, होउ अलाहि पज्जतंति, सोय थेर वाल. दुब्बलाएं
दिज्जइ तरुणाणं न दिज्जइ, तेसिं पि कारणे दिज्जइ एवं पसत्थ त्रिगइ गहणं ।
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( दशाश्रुत )
अर्थ - कारण में विकृति रूप आहार को भी ग्रहण करे, बीमार साधुओं के निमित्त और आचार्य, बालक, वृद्ध, कमजोर, स्वभाव 'से ही दुर्बल शरीर वालों के लिये गच्छ के उपकारार्थ पूर्वोक्त साधु व्यक्तियों के निमित्त विकृत्यात्मक आहार ग्रहण किया जाय, अथवा