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..( २५५ ) वे ये हैं-उपकुल, भोगकुल, राजन्य कुल, क्षत्रियकुल, इक्ष्वाकुकुल, हरिवशकुल, ऐसिक (भोज) कुल, वैश्यकुल, गंड (नापित ) कुल, ( सुथार ) कुल, ग्रामरक्ष ( कोतवाल ) कुल शौल्ककोहाग शालिक (आयात निर्यातमाल पर राजकीय नियत कर लेने वाले का) कुल, इसी प्रकार के अन्यान्य अनिन्दनीय अगहणीय कुलों में अशन (खाद्य) पान (जल) खादिम-फल मेवादि स्वादिष्ट ( चूर्ण मुखवास आदि स्वादिष्टद्रव्य ) जो प्रासुक कल्पनीय मिले उसे ग्रहण करे।
भिक्षा में अग्राह्य पदार्थ ___ यों तो गृहस्थ लोग अपने लिये अनेक खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं, परन्तु वे सभी श्रमणों के लिये ग्राह्य नहीं होते। श्रमण प्रासुक एषणीय और कल्पनीय को ही स्वीकार करते हैं। बहुतेरे. ऐसे खाद्य पदार्थ गृहस्थों के यहां तैयार होते हैं और उन्हें ग्रहण करने के लिये प्रार्थना भी करते हैं परन्तु जैन श्रमण अपने आचार से विरुद्ध किसी चीज़.का स्वीकार नहीं करते । इस बात के समर्थन में हम नीचे दशवकालिक की कुछ गाथायें उद्धत करते हैं।
. कंन्दं मूलं पलंबवा, श्रामं छिन्नं व सचिरम् । . तु बागं सिंगवेरं च, आमगं परिवज्जए ।॥ ७० ॥ तहेव . सत्तु चुबाई, कोल चुनाई. आवणे । सक्कुलिं फाणिनं पूनं, अब वा वि तहाविहं ।। ७१।। -विकाय माणं पढमं पसदं रऐणं परिफासि । दितिअं पडिआइक्खे, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ७२ ॥