________________
( २२८ )
५- सब्वाच परिग्गहाओ वेरमणं । ६-सव्वाश्रो राइ वो णाओ वेरमणं ।
अर्थ-- १. मैं सर्व प्राणियों की हिंसा से निवृत हुआ हूँ ।
२. मैं सर्व प्रकार के असत्य वचन बोलने से निवृत्त हुआ हूँ । ३. मैं सर्व प्रकार के अदत्तादान (चौर्य) से निवृत्त हुआ हूँ ४. मैं सर्व प्रकार के मैथुन (स्त्री संग) से निवृत्त हुआ हूँ । ५. मैं सर्व प्रकार के परिग्रह से निवृत्त हुआ हूँ ।
६. मैं सर्व प्रकार के रात्रि भोजन से निवृत हुआ हूँ ।
उपर्युक्त छः व्रत प्रतिज्ञाओं में से पहली पांच प्रतिज्ञायें महाव्रत नाम से प्रख्यात हैं । अन्तिम प्रतिज्ञा का विषय रात्रि भोजन है, इसकी गणना महाव्रतों में नहीं है । वह व्रतमात्र कहलाता है ।
नूतन श्रमण का मण्डली प्रवेश
उपस्थापना प्राप्त करने के बाद नूतन श्रमण सात दिन तक एक बार रूक्ष भोजन करता है, तब वह श्रमणों की प्रत्येक मण्डली में प्रवेश कर सकता है। वे मण्डलियां सात हैं जो नीचे की गाथा में निर्दिष्ट की गई हैं ।
१,२, भोरण ३, काले ४, आवस्सएका ५, सज्झाए।। ६, संथारे चेव तहा सतया मंडली जइरो ||६१||
अर्थ- सूत्र मण्डली १, अर्थ मण्डली २, भोजन मण्डली ३, काल मण्डली ४, आवश्यक मण्डली ५, स्वाध्याय मण्डली ६, और
ܕ