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( २२७ ) करंतमपि अन्न न समगुजाणामि तस्स भंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ।
इस प्रकार सर्व सावध निवृत्ति रूप सर्व विरति सामायिक को स्वीकार करने के बाद नूतन श्रमण दैनिक रात्रिक, पाक्षिक, वार्षिक कृत्यों के निरूपक "आवश्यक सूत्र" तथा आहार विहार सम्बन्धी ज्ञान कराने वाले “दश कालिक" सूत्र के आदिम चार अध्यायों को कण्ठस्थ करते हैं। फिर उन्हें छेदोपस्थानीय नामक द्वितीय चारित्र दिया जाता है, जिसको आज की भाषा में बड़ी दीक्षा कहते हैं।
छेदोपस्थापना छेदोपस्थापनीय चारित्र देते समय गुरु नूतन श्रमण को पञ्च महाव्रत तथा रात्रि भोजन विरत्ति के प्रतिज्ञा पाठ सुनाते हैं । उन पूरे पाठों को यहां न देकर उनका सारांश मात्र नीचे देते हैं। ___१-सब्बाओ पाणाइवायाओ वेरमणं ।
२-सव्वाश्रो मुसावायाओ वेरमणं । ३-सव्वाओ अदिना दानाओ वेरमणं। .. . ४-सव्वाओ मेहुणाओ बेरमणं ।
१. संस्कृतच्छाया-करोमि भदन्त । सामायिकं सर्व सावद्ययोगं प्रत्याचक्षे यावज्जीवं त्रिविधं त्रिविधेन मनसा वाचा कायेन न करोमि न कारयामि कुर्वन्तमप्यन्न नानुजानामि तस्य ( तस्माद् ) भदन्त । प्रतिक्रमामि निन्दामि गर्हे प्रात्मीयं व्युत्सृजामि ।