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( २१६ ) अर्थ:-हे मितुओ ! लोक में ये दो दान है-आमिषदान और धर्मदान, हे भिक्षुओ! इन दो दानों में जो धर्म दान है, वह श्रेष्ठ है। ___ " मे भिक्खवे संविभागा अमिस संविभागो 'च' धम्मसंविभागो च एतदग्गं भिक्खवे इमे यं द्विन्न संविभागानं यदिदं धम्म संविभागो।
अर्थ-हे भिक्षुओ! दाय विभाग दो प्रकार के हैं, आमिष संविभाग और धर्म संविभाग, हे भिक्षुश्री ! इन दो संविभागों में जो धर्म संविभाग है, वह प्रधान है।
द्व मे भिक्खवे अनुग्गहा आमिसानुग्गहो च धम्मानुग्गहो च एतदग्गं भिक्खवे इमेसं द्विन्न अनुग्गहानं यदिदं धम्मानुणहो। - अर्थ-भिक्षुओ! ये दो प्रकार के अनुग्रह ( उपकार ) हैं, श्रामिष अनुग्रह और धर्मानुग्रह, हे भिक्षुओ ! इन दो अनुग्रहों में से जो धर्मानुग्रह है वह अग्रगामी है।
द्वे मे भिक्खवे यागा आमिस यागो च धम्म यागो च, एतदग्गं भिक्खवे इमेसं द्विघ्नं यागानं यदिदं धम्मयागोति एतमत्थं भगवा अवो च तत्थे तं इति वुञ्चति । (इतिवृत्तक पृ०८६)
अर्थ-हे भिक्षुओ ! दो याग पूजा होते हैं आमिष याग और धर्म याग इन दो थागों में जो धर्मबागहै, है मिथुप्रो वह सब में अग्रेसर होता है। यह अर्थ भगवान ने कहा है, उसी प्रकार कहा जाता है। ....... . ..... ... .....