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धान्य और मांस इन आठ पदार्थों का समुदाय श्रामिष गण कहलाता है ।
मतान्तर से मिष गण
गाय बकरी, भैंस के दूध को छोड़ शेष जानवरों का दूध, आली अन्न, ब्राह्मण से खरीदे हुए रस, जमीन पर के खारे से तैयार किया हुआ नमक, ताम्रपात्र में रक्खा हुआ पुन गव्य, छोटे गड्डे में रहा हुआ जल, आत्मार्थ पकाया हुआ भोजन ये दूसरे प्रकार का आमिष गण है ।
उपर्युक्त दोनों आमिष गणों में श्रामिष शब्द अभक्ष्य प्रथमा पेय पदार्थों में प्रयुक्त हुआ है । इससे ज्ञात होता है, धर्मसिन्धु गत उपर्युक्त दो श्लोकों के निर्माण समय के पहले ही वैदिक साहित्य में आमिष शब्द का "अच्छा भोजन" यह अर्थ भूला जा चुका था । यही कारण है कि उक्त पदार्थों को आमिष का नाम देकर वर्जित बताया है ।
बौद्ध साहित्य में भिक्षान्न के अर्थ में मांस आमिष शब्द का प्रयोग
बौद्ध साहित्य में आमिष मांस इत्यादि के ओमनक सम्बधी अनेक स्थानों पर मिलते हैं। इससे प्रतो के अभ्यासी मान लेते हैं, कि बौद्ध धर्म में
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नहीं माना गया है । बौद्ध भिक्षुत्रों में मांस भक्षण का प्रचार होने
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