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( १६६ ) वृष्यो रुच्यो ज्वर-श्वास-मेह कुष्ठ-श्रम-प्रणुत् ।।
(भाव प्रकाश) अर्थ-सुनिषण्ण ठंडा, दस्त रोकने वाला, मोह तथा त्रिदोष का नाशक, दाह को शान्त करने वाला, हल्का, स्वादिष्ट कषाय रस वाला, रूक्ष, अग्नि को बढ़ाने वाला, वलकारक, रुचिकारक और ज्वर, श्वास, प्रमेह, कुष्ठ और भ्रम का नाशक हैं।
इस विषय में अन्य निघण्टु कार यह लिखते हैंसुनिषण्णो लघुाही वृष्योऽनिकृत्रिदोषहा। . मेधारुचिप्रदो दाहज्वरहारी रसायनः ॥ अर्थ सुनिषण्ण, हल्का, दस्त बन्द करने वाला, वलकारक, अग्नि बढ़ाने वाला, त्रिदोष का नाश करने वाला, धुद्धिप्रद, रुचिदायक, दाह ज्वर को हटाने वाला और रसायन होता है।
कल्पद्र म कोश के वनौषधिकाण्ड में भी कुक्कुट नाम सुनिपएणक का ही पर्याय बताया है । जैसे
.........."सूच्याख्यस्तु शितावरः ॥२६८॥ सूचीपत्रः शिंतिवरः स्वस्तिकः पुरुटः शिखी । .. मेधाकृद् ग्राहकः सूचिः कुक्कुंटः सुनिषण्णकः ॥
अर्थ-सूची, शितावर, सूचिपत्र, शीतवर, स्वस्तिक, पुरुट, शिखी, सूचि, कुक्कुट, ये सुनिषएपक के नाम हैं। सुनिषण्णक बुद्धि बढ़ाने वाला और दस्त को रोकने वाला है।