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अर्थ - कृशर के ( हिंगोटी के ) भीरु, मार्जार, किंशुक ये नाम हैं, इंगुदी शब्द पुल्लिङ्ग स्त्रीलिङ्ग में है, अगस्त्य के मुनि, मार्जार, अगस्ति बंगसेन, ये नाम हैं ।
ऊपर के श्लोक में मार्जार शब्द दो अर्थों में आया है एक हिंगोटे वृक्ष के और दूसरा अगस्त्य वृक्ष भी अद्भुत औषधीय गुण रखता है और इस का नाम मार्जार भी है, तथापि रेवती ने जो खाद्य बनाया था उसमें इस द्रव्य की मात्रा डालने का सम्भव कम ही मालूम होता है, क्योंकि इंगुदी कड़वी होती हैं। रेवती उस समय ऐसी बीमार नहीं थी कि कड़वी औषध डाल कर पाक बना के खाये । इसके विपरीत अगस्ति की फली मधुर होती है, उसका मावा निकाल कर उसके उपदान से खाद्य बनाने का अधिक सम्भव है । अगस्त्य का नाम ऊपर के श्लोक में लिखा ही है ।
अगस्त्य के तथा अगस्ति की शिम्बा के कैसे अद्भुत गुण होते हैं, यह नीचे के श्लोकों से विदित होंगे
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अगस्त्याहो वंगसेनो मधुशिग्रुमु निद्रुमः । अगस्त्यः पित्तकफजिचातुर्थिकहरो हिमः || तत् पयः पीनसश्लेष्मा पित्तनाक्त्यान्ध्यनाशनम् ॥ ( मदनपाल निघण्टु )
अर्थ - अगस्त्य, वंगसेन, मधुशिशु, मुनिद्र में, इन नामों से पहिचाना जाता है, अगस्त्य पित्त और कफ को जीतने वाला है,