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( १६६ ) नाम देते हैं । इसकी वास्तविकता का निर्णय देने का कार्य मैं अपने पाठकों पर ही छोड़ता हूँ।
"भगवती के इस अवतरण में "दुवे कवोय सरीरा" और "मजार कडए कुक्कुड मंसए" इन शब्दों का कूष्माण्ड फल तथा अगस्त्य वृक्ष की फली से निकाले गये गूदे तथा सुनिषण्णक के उपादान से बनाया गया औषधीय खाद्य ऐसा हमने जो अर्थ किया है वह कल्पित नहीं किन्तु प्रामाणिक है। उस सुनिषण्णक शाक को कुक्कुट नाम से वर्णित किया गया है । अगस्त्य दाह ज्वर मिटाने वाला, शीतवीर्य और ब्रणरोहक माना गया है । इसके इन सुन्दर गुणों से ही वानप्रस्थ ऋषि इस वृक्ष को लगाते और पालते थे, जिसके कारण अगस्त्य वृक्ष का नाम मुनिवृक्ष भी पड़ गया है। कुक्कुट एक जात का शाक होता है जो अनूप देशों में विशेष पाया जाता है । इसके सुनिषरुणक, स्वस्तिक, शिव, कुक्कुट
आदि अनेक नाम हैं । साधारण लोग इसे चोपातिया शाक अथवा शरीहारी के नाम से पहचानते हैं, और अनेक दवाइयों में इसका प्रयोग करते हैं। ___ मार्जार और कुक्कुट वनस्पतियां कैसा अद्भुत औषधीय गुण रखती है, यह निम्नोद्धृत वर्णन से ज्ञात होगा
. कृशरे भीरू मार्जार किंशुका इंगुदी नषण । ..... अगस्त्य मुनि मार्जारावगस्तिवंगसेनकः ॥१५६॥ ... .. ...
(वैजयन्ती भूमिका बन०)