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( १६१ ) प्रणीत भोजन अथवा घृत पक मिष्टान्न करना चाहिए । हम आचाराङ्ग के अवतरण पर कह आये हैं कि उस समय में मांस का प्रधान अर्थ पक्वान्न होता था। प्राण्यङ्ग मांस के खाने का प्रचार बढ़ा तब पूर्वाचार्यों ने मांस शब्द को प्राण्यङ्ग मांस के लिये रख छोड़ा और घृत-पक्क मिष्टान्न के लिये "श्रवगाहिम' शब्द का प्रयोग करना शुरू किया ।. .
निशीथाध्ययन के निम्नलिखित सूत्रों में अन्तिम विकृति का प्रणीत भोजन जात इस सामान्य नाम से निर्देश किया गया है। जो नीचे उद्घ त किया जाता है - ___"खीरं वा दहि वा नवणीयं वा गुलं वा खण्डं वा सकरं वा मच्छण्डियं अन्नयरं वा तहप्पगारं पणीयं वा आहारं आहारेइ ।"
... (षष्ठोद शे) "संनिहि-संनिचयाओ खीरं वा दहि वा नवणीयं वा सपि वा गुलं वा खण्डं वा सक्करं वा मच्छण्डियं अन्नयरं वा भोयण-जायं पडिग्गाहेइ।"
(अष्टमोहे शे) अर्थ-दूध, दही, मक्खन, गुड, खांड, शक्कर, मिश्री, अथवा अन्य कोई प्रणीत (स्निग्ध ) आहार करता है।
सन्निधि (संचित) संचय से दूध, दही, मक्खन, घी, गुड, खांड, शकर, मिश्री, अथवा अन्य कोई विशिष्ट भोजन जात ग्रहण
करें।