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डालकर उसको मुद्रा देकर तीन दिन तक रखना फिर मुद्रा तोड कर वस्त्र से जल छान लेना, बस, यही काञ्जिक है।. . .. अगर सौषीर बनाना हो तो राई, जीरा, सैन्धानमक, हिंग, सोंठ, और हल्दी कुम्भ के जल में डाल कर निस्तुष कच्चे अगर भूने यव डालकर उस घड़े के मुद्रा दे देना । तीन दिन कुम्भ को मुद्रित रखकर चौथे दिन मुद्रा हटाकर जल वस्त्र से छान लेना, इस प्रकार सौवीर जल तैयार होता है। ...............
यवोदक तुषोदक आदि सन्धान जल ईसी प्रकार अपने अपने उपादानों से तैयार किये जाते थे। ___वृहत्कल्प भाष्य में सात प्रकार के सौवीराम्लों का निरूपण नीचे की गाथाओं से स्पष्ट होंगेअहाकम्मिय संधर पासंड मीसए जाव कीय पूई अत्तकड़े। एक्के काम्मिय सत्तउ कए य काराविए चेव ॥१७५३॥
(बृहत्कल्पभाज्य) अर्थ-केवल जैन साधुओं के लिये बनाई हुई ? अपने और साधुओं के निमित्त से बनाई गई २, गृहस्थ और अन्य तीर्थिक साधुओं के लिये बनाई : हुई ३, गृहस्थ आगन्तुक अतिथि और पाखण्डिकों के लिये बनाई हुई ४, साधुओं के लिये खरीदी हुई ५, पूति कर्म सौवीरिणी ६, और गृहस्थ ने अपने घर के लिये बनवा कर रक्खी हुई सौवीरिणी ७ ।. . ..