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गाथा पतिनी के घर भेजकर वहाँ से जो औषधीय खाद्य मंगवाया
था, उसका भगवती सूत्र के गोशालकशतंक में सविस्तर वर्णन किया गया है । जिसका आगे पीछे का सम्बन्ध छोड़कर अध्यापक धर्मानन्द कौशाम्बी विचले निम्नलिखित वाक्य उद्धत किये हैं, और उसके अर्थ में यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि महावीर स्वामी भी मांस खाते थे। धर्मानन्द द्वारा उद्धत पाठ और उसका अर्थ नीचे दिया जाता है
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"तं गच्छहणं तुमं सीहा मेंढिय गामं नगरं रेवतीए गाहा पतिणीए ममं अट्ठाए दुबे कबोय सरीरा उपक्खडिया तेहिनो अट्ठो | अत्थि से अन्न परियासिए मज्जार कडए कुक्कुड मंसए तं श्रहाराहि एएां अट्ठो ।"
उपर्युक्त उद्धरण का धर्मानन्द कौशाम्बी नीचे लिखा अर्थ बताते हैं ।
उस समय महावीर स्वामी ने सिंहनामक अपने शिष्य से कहा "तुम मेंढिय गाँव में रेवती नामक स्त्री के पास जाओ। उसने मेरे लिए दो कबूतर पका कर रक्खे हैं । वे मुझे नहीं चाहिए | तुम उससे कहना कि कल बिल्ली द्वारा मारी गयी मुर्गी का मांस तुम ने बनाया है, उतना दे दो"
उक्त अर्थ श्री कौशाम्बी ने अपनी तरफ से नहीं पर श्री गोपालदास जीवा भाई पटेल के कथनानुसार लिखा है । श्री गोपालदास और अध्यापक कौशाम्बी ने भगवान् महावीर की