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के समय उसके पितृ घर में दिया जाने वाला ) भोज हो, हिंगोल ( मृतक भोजन अथवा यज्ञादि की यात्रा के निमित्त किया जाने वाला ) भोज हो, और सम्मेल ( कौटुम्बिक अथवा गोष्ठी ) भोज हो, और एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता देख कर, उस स्थान पर जाने के मार्ग बहुत प्रारणाकुल बहुत बीजाकुल, बहुत हरिताकुल, बहुत योषाकुल, बहुत जलाई बहुत कीटि का घर वाले बहुत काई वाले, बहुत जल वाले, बहुत मिट्टी वाले और बहुत मकडी के जाले वाले हों, वहां बहुत श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण, याचक, आगये हों अथवा आने वाले हो वहां भरा हुआ मार्ग बुद्धिमान् के लिए निकलने प्रवेश करने योग्य नहीं होता । न वह स्थान बुद्धिमान् के लिए वाचना, पृच्छना, परिवर्त्तना, अनुप्रेक्षा _और धर्मकथा के अनुयोग के लिए उपयुक्त होता है। वह इस प्रकार की परिस्थिति को जान कर उक्त प्रकार की पुरस्संस्कृति (जहां भोज हो चुका हो ) पश्चात् संस्कृति ( जहां भोज होने वाला हो ) ऐसे संस्कृति स्थान में संस्कृति ( मिष्ट पक्वान्न ) लेने के लिए जाने का विचार न करे ।
यदि भिक्षु अथवा भिक्षुणी यह जाने कि मांसादि अथवा मत्स्यादि संस्कृति अमुक स्थान पर है और उसके निर्माण स्थान
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अमुक है । वह संस्कृति आहे आदि अमुक प्रकार की है और पक्वान्न अमुक स्थान से अमुक स्थान ले जाये जाते हैं । और वहाँ जाने के मार्ग अल्पप्राण यावत् अल्प मकड़ी जालों वालें हैं, वहाँ श्रमण ब्राह्मण आदि नहीं आये हैं, न अधिक आने वाले