________________
. १५४ ) उपयुक्त मांसादि शब्द जैन सूत्रों तथा प्रकरण ग्रन्थों में आते रहते हैं । परन्तु इनमें से बहुत से शब्दों के मौलिक अर्थ ईसा की प्रथम शताब्दी तक भूले जा चुके थे। मात्र आमिष शब्द अपना मौलिक अर्थ ईसा की बारहवीं सदी तक टिकाये रहा था, परन्तु उसके बाद आमिष का वास्तविक अर्थ भी चला गया।
अब हम उक्त शब्द कहां कहां प्रयुक्त हुए हैं, उनका स्थल निर्देश पूर्ण वर्णन करेंगे।
मांस शब्द "आचारांग" "निशीथाध्ययन" "सूर्य प्रज्ञप्ति" "चुल्ल कप्प मुत्त' आदि सूत्रों में, आमिष शब्द "सम्बोध प्रकरण" "धर्म रख करण्डक' आदि में, पुद्गल शब्द "आचारांग" दशवैकालिक सूत्र" आदि में, मेड शब्द "भगवती सूत्र में, मत्स्य शब्द "भाचारांग" "निशीथाध्ययन" आदि में, और मद्य शब्द "वृहकल्प" भाष्य, "चुल्ल कप्प मुत्त" में आया है। इनमें से मांस आमिष शब्द घृत पक्व मिष्टान्न के अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
मड प्रासुक शब्द अचित्त ( निर्जीव ) भोजन पानी के अर्थ में व्यवहृत हुआ है । मत्स्य शब्द जैन सूत्रों में मद कारक कोद्रव आदि असार धान्यों के तन्दुल के अर्थ में बाया है। मद्य शब्द सन्धान जनित सौवीर जल आदि पेय पानीय के अर्थ लिखा गया है। ___ अब हम उक्त शब्दों के सूत्र स्थलों को उद्धत करले उनका वास्तविक अर्थ समझायेंगे। आचाराज सूत्र द्वितीयश्रुतस्कन्धे संखडि सूत्रम्