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मानव भोज्य मीमांसा
द्वितीय अध्याय
( २ )
ऋग्वेद समयेदव-यज्ञाः प्राच्यैर्महर्षिभिः । विहितास्ते यवत्रीहिमया ज्ञेया विचक्षणैः ॥ १ ॥
अर्थ — ऋग्वेद के काल में पूर्व महर्षियों द्वारा जो देव यज्ञ किये गये थे वे यव-ब्रीहि आदि धान्यमय थे, ऐसा चतुर विद्वानों को समझना चाहिये ।
१. प्राच्यवेदकालीन यज्ञ
प्राच्य वेदकालीन यज्ञ से यहां ऋग्वेद के समय के यज्ञों से तात्पर्य है । ऋग्वेद का अध्ययन करने वाले प्रोफेसर मैक्समूलर तथा उनके पृष्ठवर्ती विद्वानों ने यह बात तो मान ली है कि ऋग्वेद के निर्मापक ऋषि बड़े सीधे-सादे थे । वे अधिकांश नदियों के