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[1] पूटती विगतो :મૂળધાતુ અર્થ ગણ પદ પુરુષવચન વર્તમાન હ્યસ્તન આજ્ઞાર્થ | વિધ્યર્થ
કાળ ભૂતકાળ visj |0|6.५.
अक्षुन्द्व | क्षुणदाव क्षुन्द्याव अञ् यो५७j | ७ | ५.५. | अक्थ | आङ्क्त अङ्क्त अज्यात સળગાવવું |
ऐन्द्ध | इन्द्धाम् । इन्धीत મારવું
| तृण्डः अतृण्ढम् | तृण्ढम् तुंह्यातम् छे
| छिन्तः अच्छिन्ताम् | छिन्ताम् |छिन्द्याताम् ભેદવું
3 | भिन्द्महे अभिन्महि | भिनदामहै | भिन्दीमहि ભોગવવું
| भुञ्जन्ति अभुञ्जन् | भुञ्जन्तु भुज्युः પીસવું |૭| ૫.૫. पिनक्षि | अपिनट-ड् | पिण्डि पिंष्याः
wing |७|| 3 | भज्मः | अभज्म | भुनजाम | भञ्ज्याम | SAL 5२वी| ७ | " हिंस्वः | अहिंस्व | हिनसाव हिंस्याव
मे २५ो | ७ | " | १ | शिनक्षि | अशिनट-ड् | शिण्ड्डि शिष्याः 12] रिच | मादी २ | ७ | 6.५. | 3 | रिञ्चन्ति| अरिञ्चन् | रिञ्चन्तु रिञ्च्युः 13] रुध् । અટકાવવું
| १ | रुन्त्से | अरुन्धाः | रुन्त्स्व | उन्धीथाः | युज्
| २ | युक्तः | अयुङ्क्ताम् | युङ्क्ताम् |युज्याताम् सम्+पृच् संपभi | ७ | ५.५.
3 संपृञ्च्मः| समपृञ्च्म |संपृणचाम | संपृञ्च्याम આવવું 16 | खिद् | पाम | ७ |..| 3 | २ | खिन्दाते अखिन्दाताम् खिन्दाताम् खिन्दीयाताम् |17| विद् | १६२५ो | ७ | " | २ | 3 | विन्ध्वे अविन्ध्वम् | विन्ध्वम् विन्दीध्वम् |18| वृज् ॥ २३| ७ | ५.५.| १ | १ | वृणज्मि | अवृणजम् | वृणजानि | वृञ्ज्याम् | [2] तरि वाग्योनुं भामा ३५iत२५ :
1. मया कर्माणि अक्षुद्यन्त । 2. असुरेण तौ छिद्येयाताम् । 3. तेन सुखं भुज्यताम् । 4. दयालुना वृजिनैः समं सङ्गः वृज्यते । 5. त्वयाऽहं रुध्यै ।
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स२८ संस्कृतम् - ५
. १३०.
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