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5. एकदा पणायन्तं / द्यूतं क्रीडन्तं नलराजानं दमयन्ती उवाच - नाथ !
द्यूतं जहीत। 6. किन्तु नलराजा न दमयन्तीकथनं शुश्राव, दमयन्तीं च ददर्शापि न । 7. दशाननः सीतां गृहीत्वा लङ्कां निनाय । 8. ततः क्रुद्धौ रामलक्ष्मणौ सैन्यं गृहीत्वा लङ्कां जग्मतुः । 9. तत्र रामबलदेवस्य भ्राता लक्ष्मणः वासुदेवः दशाननं प्रतिवासुदेवं
जघान । [3] पूटती विगतो :| નં. ધાતુ ગણ પદ અર્થ પુરુષ એકવચન દ્વિવચન બહુવચન 3 A भा५j १ | ममे | ममिवहे | ममिमहे
| ययाचिषे | ययाचाथे | ययाचिध्वे हीमा २३j| 3 | तस्थौ तस्थतुः तस्थुः પોષવું पुपोषिथ | पुपुषथुः
रुरोद | रुरुदतुः ચોરવું मुमोष | मुमुषिव मुमुषिम १ | A
ગમવું | रुचे । रुचाते | रुरुचिरे २ | 0 | વૈષ કરવો दिद्वेषिथ | दिद्विषथुः दिद्विष
४ | P | गुस्सो ४२वो, १ चुक्रोध | चुक्रुधिव | चुक्रुधिम [4] मोगमा :નં. રૂપ મૂળધાતુ પુરુષ વચન અર્થ | તેની લાઈનના બીજા બે રૂપ 1.| बुभुजिरे| भुज् 3 | 3 तमोमे भोगव्यु | बुभुजे | बुभुजाते 2. / बभ्रज्जुः| भ्रस्ज् 3 | 3 | तमोमे यु बभ्रज्ज बभ्रज्जतुः 3.| जज्ञिध्वे | २ | 3 | तमे एयुं । जज्ञिषे जज्ञाथे 4.| जगर्ज
१ | में गठन। २ । जगजिव जगजिम 5.| चख्यतुः
२ | तेजेसे ही चख्यौ चख्युः 6. | चिक्यिरे चि | 3 | तमोमेमेगुंथु | चिक्ये चिक्याते 7. लिलेथ | ली २ | १ | तुं लीन थयो | लिल्यथुः 8. | शुशुविव| श्वि | १ | २ | अभेजे गया शुशाव-शुशव | शुशुविम | 9. निनिजथुः निज् २ | २ तमे में साई ज्युं| निनेजिथ | निनिज # सरस संस्कृतम् - 3 • १२०० 0416-२/२१४
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ज्ञा 'गर्ज
قی له
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लिल्य