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________________ श्री सिद्धचक्रना यंत्रनी पुनः धूपादिथी पूजा करवी. (४९) जमीनथी उंचा बाजोठ उपर स्नान करे, जेथी तेनो रेलो जवाथी, कीडी, कुंथुआ, लीलफुल आदि कोइ जीवनी विराधना न थाय अने ते पाणी निर्जीव शुद्ध स्थंडिल भूमि जोइ छुटुं छुटुं परिठवq के जेथी तुरतमा सुकाइ जवाथी संमूर्छिम जीवोत्पत्ति तथा लीलफूल विगेरे थवानो संभव न रहे, शरीर लोही नाखी निर्जल थये बीजं वस्त्र फेरवी शुद्ध सफेद बीजाए नहि वापरेल पवित्र वस्त्रो पूजा माटे राखवा, पूजामां रेशमी दुकूल-वस्त्रो बीजा उत्तम वर्णना होय तो पण चाले छे. स्त्री अने पुरुषोना वस्त्रोमां बीलकुल फेरफार करवो नहि, फाटेला सांधेला मेला वापरवा नहि वस्त्र शुद्धि राखवी. अंग वसन मन भूमिका, पूजोपकरण सार। न्यायद्रव्य विधिशुद्धिता, शुद्धि सात प्रकार ॥१॥ __ए सात शुद्धिनो बनतो उपयोग राखवो, अंग, अग्र, भाव विगेरे अनेक पूजा भेदोनुं स्वरूप समजी जेम विशिष्ट पूजन थाय तेम वर्तवू, जेजे पदाराधननो दिवस होय ते ते दिवसे ते ते पदनी विशिष्ट पूजा करवी विगेरे,संपूर्णविधि साचववासाथेपूजाअष्टप्रकारी आदि विस्तारथी करवीश्री अरिहंतपदनी विशेष पूजा करवी.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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