________________
(३६) नवपद विधि विगेरे संग्रह । ॥आ बार गुणोनी हृदयमां भावना रहेवा माटे
तेनी अर्थविचारणा.॥
श्री तीर्थंकर प्रभुना बाह्य ऐश्वर्य सूचवनार प्रतिहार भक्त (सेवक देवो)ना भक्ति कर्त्तव्य आठ प्रातिहार्यो तथा आन्तर ऐश्वर्य अने अनेक अतिशयना बीजक रूप चार मूलातिशयो ए बार गुणोए श्री अरिहंत प्रभुने ध्यान करवा. १ प्रभु ज्या ज्यां स्थिरता करे त्यां त्यां सर्व शोकादि दूर करनार प्रभुना बार गुणो अशोकवृक्ष देवताओ रचे छे, वायुथी फरकती तथा चमकती अनेक ध्वजाओ अने घूघराओथी सुशोभित अशोक वृक्ष रूप प्रातिहार्य. २ एक योजन प्रमाण क्षेत्रमा अधोमुखवाळा ढींचण
प्रमाण पांचवर्ण पुष्पवृष्टिरूप प्रातिहार्य. ३ मालव कौशिक रागे थती भगवंतनी वाणीने अनुसरता दिव्य ध्वनिरूप प्रातिहार्य,