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प्रथम दिवसनो कर्तव्य विधि ॥ प्रथम दिवसनो कर्तव्यविधि.
रात्रिनो चार घडी काल शेष रहे त्यारे जागृत थाय, परमेष्ठिमंत्रनुं स्मरण करे, पोताना स्वरूपनो विचार करे–“हुं कोण छ,' 'क्यांथी आव्यो छु, 'क्यां जवानो छु,'. 'मारुं कुल कयुं, 'मारो धर्म कयो' 'मारा देव कोण,' 'मारा गुरु कोण, 'मारा धर्मने मारा कुलने उचित कर्त्तव्य शुं छे, में उत्तम कर्तव्यो शा शा कर्यां अने शा शा बाकी छे' इत्यादि विचारणा करवी, अनन्त पुण्योदये आराधननो काल प्राप्त थयेल होवाथी अपूर्व उत्साह अने वीर्योल्लास साथे स्वस्थ थइ श्री अरिहंत महाराजनाआराधनानो पवित्र दिवस होवाथी श्री तीर्थंकर भगवानना द्रव्यगुण पर्यायोनी चिन्तवना करी तेमनाध्यानमां आपणा आत्माने लीन करी सामायिक अंगीकार करे. कुसुमिण दुसुमिणनो काउस्सग्ग (कर्म परिणामनी विचित्रताथी जीवघात-मैथुनादि संबंधी रौद्रस्वप्न आव्युं होय तो सागरवरगंभीरा सुधी