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(२८) नवपद विधि विगेरे संग्रह। नार, गुरु उपासनामां प्रीतिवान्, कर्मक्षयनो अर्थी, रागद्वेषनी मन्दतावाळो, दयालु विनयनी अपेक्षा राखनार, आलोक परलोकना फलनी स्पृहा नहि करनार, इत्यादि गुणवान् जीव तपनो अधिकारी छे. अल्प गुणवाने यथाशक्ति गुणो मेळववा उद्यम करवो.