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________________ (३७२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ सूचे अति अनुपम उपशम लीला चित्तनी; वारूजी॥ जो दहन गहन होय अंतरचारी, विश्वनो तारूजी। तो किम नवपल्लव तरुअर दीसे सोहतो. वा० ॥१२॥ वैरागी त्यागी तुं सोभागी, विश्वनो तारूजी। तुज शुभमति जागी भावठ भागी मूलथी; वारूजी॥ जग पूज्य तुं मारो पूज्य डे प्यारो, विश्वनो तारूजी। पहेला पण नमियो हवे उपशमियो आदयों. वा०||१३॥ एम चोथे खंडे रागअखंडे संथुण्यो, विश्वनो तारूजी। जे मुनि श्रीपाले पंचमी ढाले ते कह्यो वारूजी ॥ जे नवपदमहिमा महिमायें मुनि गावशे, विश्वनो ता.॥ ते विनय सुजस गुण कमला विमला पावशे. वा०॥१४॥ श्रीपाल महाराजाने श्री सिद्धचक्र भगवान्ना आरा धनथी मळेल साक्षात् फल. सिद्धचक्र मुज एह, मनोरथ पूरशे हो लाल, मनोरथ एहिज मुऊ आधार, विघन सवि चूरशे हो लाल, वि० थिर करी मन वच काय,रह्यो इक ध्यानशुं होलाल रह्यो तन्मय तत्पर चित्त थयुं तस ज्ञानशुं होलाल, थयुं०८
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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