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________________ श्री सिद्धचक्राराधननो विवि ॥ (३६५) इम सिद्धचक्रनी सेवना, करे साडाचार ते वर्ष मे० हवे उजमणा विधितणो, पूरे तप उपनो हर्ष। मे,म१६ चोथे खंडे पूरी थइ, ढाल नवमी चढते रंग ॥ मे. ॥ विनय सुजस सुख ते लहे, सिद्धचक्र थुणे जे चंग. ॥ १७॥ श्री मुनिचन्द्रसूरीश्वरजीए श्रीपाल महाराजा तथा मयणासुन्दरोने बतावेल श्री सिद्धचक्राराधननो विधि ॥ श्री मुनिचंद गुरे तिहां, आगमग्रंथ विलोइरे ॥ माखणनी पेरे उद्धरयो, सिद्धचक्रयंत्र जोइ रे ॥ चेतन चेतोरे चेतना, आणी चित्त मोझार रे ॥ १३॥ अरिहंतादिक नव पदे, ओ ही पद संयुक्त रे ॥ अवर मंत्राक्षर अभिनवा, लहीए गुरुगम तत्त रे॥ चेतन० ॥ १४ ॥ सिद्धादिक पद चिहुं दिशे, मध्ये अरिहंत देव रे॥ दरिसण नाण चरित्त ते, तप चिहुं विदिशे सेव रे ॥ चेतन० ॥१५॥ अष्ट कमलदल इणी परे, यंत्र स
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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