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________________ ( ३३६ ) नवपद विधि विगेरे संग्रह | नाण अनंत, आठमे चारित्र हुंत । नमो तवस्स नवमे सोहंत, श्रीसिद्धचक्रनुं ध्यान धरत, पातिकनो होय अंत ॥ १ ॥ केशर चंदन अगर घसीजे, मांहे कस्तुरी भलीजे घन घनसार ठवीजे, । गंगोदकस्युं न्हवण करीजे श्रीसिद्धचकनी पूजा कीजे, सुरभि कुसुम चरचीजे ॥ कंदरू अगरूनो धूप डहीजे कामधेनुघृत दीप भरजे, निर्मल भाव वहीजे । अनुपम नवपद ध्यान धरीजे, रोगादिक दुःख दूर हरजे, मुक्तिवहु परणीजे || २ || आसो ने वली चैत्र रसाल, उज्वल पक्ष ओली सुविशाल, नव आंबिल चोसाल । रोग शोषनो से तपकाल, साढा चार वरस तस चाल; वली जीवे त्यां भाल ॥ जे सेवे भावि थई जमाल, ते लहे भोग सदा असंराल, जीम मयणा श्रीपाल । छंडी अलगो आल पंपाल, नित्य आराधे त्रण काल, श्रीसिद्धचक्र गुणमाल ॥ ३ ॥ गजगामिनी चंपकदलकाय, चाले पग ने उर ठमकाय, हीयडे हार सोहाय । कुंकुम चंदन तिलक रचाय, पहिरे पीत पटोली बनाय, लीलाये लहकाय ॥ बाली भोळी चक्केसरी माय; जे नर सेवे सिद्धचक्रराय, ये तेहने सुसहाय । I
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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