SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ 'आराधे, दिन दिन दोलत तस घर वाधे,अति शिवसुख साधे॥ विमलेश्वर यक्ष सेवा सारे, आपदा कष्टने दूर निवारे, दोलत लक्ष्मी वधारे ॥ मेघविजय कवियणना शिष्य,आणी हैडे भाव जगदीश,विनय वंदे निशादेश ४ ॥ अथ श्री सिद्धचक्र स्तुति ॥ ॥ जिनशासन वंछित, पूरण देव रसाल ॥ भावे भवि भणीए. सिद्धचक्र गुणमाल ॥ त्रिहं काले एहनी, पूजा करे उजमाल ॥ ते अमर अमरपद, सुख पामे सुविशाल ॥१॥ अरिहंत सिद्ध वंदो, आचारज उवझाय ॥ मुनि दरिसण नाण, चरण तप ए समु. दाय ॥ ए नव पद समुदित, सिद्धचक्र सुखदाय ॥ ए ध्याने भविनां, भव कोटि दुःख जाय ॥२॥ आसो चैतरमां, सुदि सातमथी सार॥ पूनम लगे कीजे, नव आंबिल निरधार ॥ दोय सहस गणे, पद सम साडाचार ॥ एकाशी आंबिल तप, आगमने अनुसार ॥ ३ ॥ सिद्धचक्रनो सेवक, श्री विमलेसर देव ॥ श्रीपाल तणी परे, सुख पूरे स्वयमेव ॥ दुःख दोहग
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy