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॥ थोयो॥
(३२७) तप कीजे, अहोनिश नव पद ध्यान धरीजे, जिनवर पूजा कीजे ॥ पडिक्कमणां दोय टंकनां कीजे, आठे थुइए देव वांदीजे, भूमि संथारो कीजे ॥ मृषा तणो कीजे परिहार, अंगे शीयल धरीजे सार, दीजे दान अपार ॥१॥ अरिहंत सिद्ध आचार्य नमीजे, वाचक सर्वे साधु वंदीजे, देसण नाण सुणीजे ॥ चारित्र तपर्नु ध्यान धरीजे, अहोनिश नन्न पद गणणुं गणीजे, नव
आंबिल पण कीजे ॥ निश्चल राखी मन हो निश्चे, जपीए पद एक एक ईश, नोकारवाली वीश ॥ छेल्ले
आंबिल मोटो तप कीजे, सत्तरभेदी जिनपूजा रचीजे, मानवभव लाहो लीजे ॥२॥ सातसें कुष्ठीयाना रोग, नाठा यंत्र नमण संजोग, दूर हुआ कर्मना भोग॥अढारे कुष्ठ दूरे जाये, दुःख दोहग दूर पलाये, मनवंछित सुख थाये ॥ निरधनीयाने दे बहु धन्न, अपुत्रीयाने ये पुत्ररतन्न, जे सेवे शुद्ध मन्न॥ नवकार समो नहीं कोई मंत्र, सिद्धचक्र समो नहीं कोइ जंत्र, सेवो भवि हरखंत ॥३॥ जिम सेव्या मयणा श्रीपाल, जंबर रोग गयो सुख रसाल पाम्या मंगलमाल ॥श्रीपाल तणी पेरेजे