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(३०६) नवपद विधि विगैरे संग्रह ॥ प्रेमेशुं पखाली रे ॥ सिद्धचक्रने शुद्ध आराधी, जाप जपे जपमाली ॥ आ०॥३॥ देहरे जइने देव जुहारो, आदीश्वर अरिहंत रे ॥ चोवीशे चाहीने पूजो, भावेशं भगवंत ॥ आ० ॥ ४ ॥ बे टंके पडिकमणुं बोल्युं, देववंदन त्रण काल रे ॥ श्री श्रीपाल तणी परे समजी, चित्तमां राखो चाल ॥ अ०॥ ५॥ समकित पामी अंतरजामी आराधो एकांत रे ॥ स्याहादपंथे संचरतां, आवे भवनो अंत ॥ अ० ॥ ६ ॥ सत्तर चोराएं सुदि चैत्रीए, बारशे बनावी रे ॥ सिद्धचक्र गातां सुख संपत्ति, चालीने घेर आवी ॥ आ०॥७॥ उदयरतन वाचक उपदेशे, जे नर नारी चाले रे॥ भवनी भावठ ते भांजीने, मुक्तिपुरीमा महाले ॥ अ०॥८॥ इति॥
॥ सिद्धचक्रजी- स्तवन ॥ ॥ जीहो कुंवर बेठा गोखड ॥ ए देशी ॥ ॥जीहो प्रणमुं दिन प्रत्ये जिनपति ॥ लाला॥ शिव सुखकारी अशेष ॥॥ जीहो आसोइ चैत्री तणी ॥ लाला ॥ अट्ठाइ विशेष भविकजन ॥ जिनवर