SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ स्तवनो॥ (३०३) जितेंद्र ज्ञानविनोद प्रसंगे, भक्ति करो भगवानकी ॥ ॥ बलिहारी नवपद ध्यानकी ॥ ७॥ इति ॥अथ नवम स्तवनम् ॥ ॥ पूज्य पधारो मरु देशे ए देशी ॥ नवपद महिमा सांभलो, वीर भाखे हो सुणो पर्षदा बार के ॥ ए सरिखो जग को कहीं, आराध्यो हो शिवपद दातार के ॥ न० ॥१॥ नव ओली आंबिल तणी, भवि करीए हो मनने उल्लास के ॥ भूमिशयन ब्रह्मवत धरो, नित सुणीए हो श्रीपालनो रास के ॥न०॥२॥ नव विधिपूर्वक तप करी, उजमणुं हो कीजे विस्तार के ॥ साहामी सामिणी पोषीए, जेम लहीए हो भवनो निस्तार के ॥ न०॥३॥नरसुख सुर सुख पामीए, वली पामे हो भवभव जिनधर्म के ॥ अनुक्रमे शिवपद पण लहे, जिहां मोटा हो अदय सुख शर्म के ॥ न०॥४॥ सांभली भावियण दिल धरो, सुखदायी हो नवपद अधिकार के ॥ वचनविनोद जिनेंद्रनो, मुज होजो हो भवभव आधार के॥ नवपद महिमा सांभलो ॥ ५॥ इति ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy