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नवपद विधि विगेरे संग्रह |
णी ॥ नवनिधि आपे नव पद सेवे, इम भाखे श्री जिनदेवा ॥ ० ॥ १ ॥ श्रीसिद्धचक्र धरो नित्य दिल में, जैसे गजमन रेवा ॥ आ० ॥ २ ॥ अरिहंतादिक एक पद जपतां, हांरे लहीए सुख सदैवा ॥ आ० ॥ ३ ॥ समुदित जपतां किम करी न करे, सुरसुखद्रुमफल लेवा ॥ आ० ॥ ४ ॥ जिनेंद्र कहे इम ज्ञानविनोदे, हर्षित द्यो नित मेवा ॥ आ० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ अष्टम रतवनम् ॥ ॥ राग सारंग ॥
॥ गौतम पूछत श्री जिन भाखत, वचन सुधारस पानकी ॥ बलिहारी नवपद ध्यानकी ॥ १ ॥ नव पद से नवमे स्वर्गे, पावत ऋद्धि विमानकी ॥ ०॥२॥ याकी महिमा वल्लभ हमकुं, जेसे जसोदा कानकी ॥ ब० ॥ ३ ॥ पावे रूप सरूप मदनसो, देही कंचन वानकी ॥ ० ॥ ४ ॥ याकी ध्यान हृदय जब आवत, उपजत लहेरी ज्ञानकी ॥ ० ॥ ५ ॥ समकित ज्योति होवे दिल भीतर, जैसे लोकनमें भानकी ॥ ब० ॥६॥