________________
आरतिओ ॥ ॥
(२५५)
द्रव्यषट्को श्रद्धा आवे, शम संवेगादिक पावे । विनाए ज्ञान नहि किरिया, जैनदर्शन से सब तरीया ॥ ज्ञान पदारथ पद सातमे, पदमें आतमराय । रमतां राम अध्यातममांहे, निजपद साधे काम, देखता वस्तु जगत सारी ॥ ३ ॥ जगतमां जोगकी महिमा बहु जाणी, चक्रधर छोडी सब राणी, यति दशधर्मे करी सोहे, मुनिश्रावक सब मन मोहे ॥ कर्म निकाचित कापत्रा, तप कुठार करधार, नवसुं पद जो धरे क्षमासुं, कर्म मूल कट जाय भजो नवपद जय सुखकारी ॥ ४ ॥ जगतमां ॥ श्रीसिद्धचक्र भजो भाइ, आचाम्ल तपनो विधि थाइ पाप त्रिहुं जोगे परिहरज्यो, भाव श्रीपालपरे धरज्यो । संवत ओगणीश सत्तरा, समे जे पोशीणा श्रीपास चैत्र धवल पूनमने दिवस, सकल फली मुज आश बाल कहे नवपद छबी थारी, जगतमें नवपद जयकारी ५
इति लावणी संपूर्ण ॥
•