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( २३८ )
नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ भविका ॥ सि० ॥ २६ ॥ मलउपशम क्षय उपशमक्षयथी, जे होय त्रिविध अभंग ॥ सम्यग्दर्शन तेह नमीजे जिनधर्मे दृढरंग रे ॥ भविका ॥ सि० ॥ २७ ॥ पंच वार उपशमिय लहीजे, क्षयउपशमिय असंख ॥ एकवार क्षायिक ते समकित दर्शन नमिये असंख रे ॥ भविका ॥ सि० ॥ २८ ॥ जे विण नाण प्रमाण न होवे, चारित्र तरु नवि फळियो । सुख निवाण न जे विण लहीये, समकितदर्शन बलियो रे | भविका ॥ सि० ॥ २९ ॥ सडसह बोले जे अलंकरियुं, ज्ञानचारित्रनुं मूल ॥ समकितदर्शन ते नित्य प्रणमुं, शिवपंथनुं अनुकूल रे || भविका ॥ सिद्धचक्र० ॥ ३० ॥
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|| ढाळ ||
शम संवेगादिक गुणा, क्षयउपशम जे आवे रे।। दर्शन तेहिज आतमा, शुं होय नाम धरावेरे ॥ ७ ॥ वीर० ॥
॥ इति षष्ठ सम्यग्दर्शनपदपूजा समाप्त ॥ ६ ॥