SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २३७ ) श्री नवपदजीनी पूजा || श्रद्दधानं, कहिये दर्शनं तेह परमं निधानं ॥१४॥ विना जेहथी ज्ञान अज्ञान रूपं, चरित्रं विचित्रं भवारण्यकूपं ॥ प्रकृति सातने उपशमे क्षय ते होवे, तिहां आपरूपे सदा आप जावे ॥१५॥ || ढाळ || उलालानी देशी || सम्यग्दर्शन गुण नमो, तत्त्व प्रतीत स्वरूपोजी ॥ जसु निरधार स्वभाव छे, चेतनगुण जे अरूपोजी ॥ ११ ॥ (उलालो ) जे अनुप श्रद्धा धर्म प्रगटे, सयल परईहा टळे || निजशुद्धसत्ता प्रगट अनुभव, करणरुचिता उच्छले ॥ बहु मान परिणति वस्तुतत्त्वे, अहव तसु कारणपणे ॥ निज साध्यदृष्टे सर्वकरणी, तत्त्वता संपत्ति गणे ॥ १२ ॥ ॥ पूजा ढाळ ॥ शुद्धदेव गुरुधर्म परीक्षा, सदहणा परिणाम ॥ धर्मतत्त्व रूचि एक विधि, दुविह निसर्ग उपदेश, क्षायिक क्षायोपशमिक क्ळी, औपशमिक तृतीय विशेष ॥ ४ ॥ कीजे सास्वादन सहित, थाये चार ते वार; वेदक समकित युक्तश्युं, थाय पंच प्रकार ॥ ५ ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy