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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm श्री सिद्धचक्राराधक भव्यजीवनां कर्तव्यो ॥ (१९७) धक साधु भगवंतोने वन्दन, नमन, आदर सन्मानादि करवा.वसति, अन्न, पान. औषध,भैषज्यादि आपवा. दीक्षा महोत्सवादि करवा, साधुनुं सामैयुं विगेरे करवा. ६ श्री दर्शनपदाराधन--श्री तीर्थ भक्ति करवी, श्री तीर्थरक्षणकार्यमा उत्साहपूर्वक बनती साहाय्य आपत्री, यात्रा संघो काढवा, साधर्मिक वात्सल्यो करवा, रथयात्रादि महोत्सवो करवा,शासनोन्नतिना कार्यमां प्रयत्न करवो विगेरे. ७ श्री ज्ञानपदाराधन-सिद्धान्तो लखाववा, भणनारने सहाय आपवी, पुस्तक संरक्षणना साधनो योजवा, पुस्तक विगेरे ज्ञानसाधनोनी प्रभावना करवी, ज्ञान दान कर विगेरे. ८ श्री चारित्रपदाराधन-व्रत नियमादि पाळता विरति वंत जीवोनी भक्ति करवी, चारित्रना उपकरणो विगेरे साधनोथी साहाय्य करवी विगेरे. ९ श्री तपःपदाराधन--तपस्विओनी भक्ति वैयावच्चादि करवा तपस्विओने प्रभावनाओ करवी तप करतां उत्साह वधे तेवी अनुकूलता जोडी आपवी विगेरे.
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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