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तपना उद्यापन अंग करवाना कर्त्तव्य ॥ ( १९३ ) वलयादिनी रचना विगेरे स्वरूप गीतार्थ गुरु महाराज पासे समजनुं,
॥ तपनां उद्यापन अंगे करवाना कर्तव्य ॥
जेटला तप दिवसो होय तेटली संख्या दरेकनी उत्कृष्टताथी लेवी, न बनी शके तो वर्तमान आचरणाए ओळीनी अगर पदोनी संख्या लेवाय बे,
नवीन चैत्यो बंधाववा, जीर्णोद्धार कराववा, जिन बिम्बो भराववा ( परिकर समेत तथा परिकरविनाना श्री सिद्धचक्र भराववा, श्री सिद्धचक्र यंत्रो कराववा, श्री सिद्धचक्र यंत्रो चीतराववा, गणधर भगवंत आदिनी गुरु मूर्तिओ, पौषधालय, धर्मशाला, उपाश्रय
बधाववा.
प्रभुजीना तमाम आभूषणो--मुकुट, कुंडल, तिलक, हंस, बाजु, कल्ली, कडा आंगी, भामंडल, पाखरो, श्रीवत्स, बीबीओ, चांल्ला विगेरे, त्रिगडा बाजोटो, सिंहासन, चंदुवा, पुंठीया, रुमाल, पाठा, तोरण, स्थापना
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