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अनुष्ठानमा विधिनुं माहात्म्य ॥ (५) भगवंतो श्री नवपद् ध्यानने सर्वथी मुख्य ( आलंबन ) फरमावे छे.
श्री सिद्धचक्र भगवान्नी आराधनामां तत्पर थयेल भव्यजीवोने जेम जेम ते आराधननो दिवस नजीक आवतो जाय छे तेम तेम उल्लास परिणाम तीव्र थतो जाय छे, भाग्यवान् जीवना हृदयमां एज विचार उद्भवे छे के चीकणा कर्म खपाववाना परम साधनरूप अनन्त पुण्योदये आ श्री सिद्धचक्र महाराजनी आराधना प्राप्त थई छे. जगत्मां तेवं कोई ध्येय [ध्यान करवा लायक] बाकी नथी के जे आश्री सिद्धचक्रजी भगवान्ना ध्यानमां न आवतुं होय, अथात् सर्वध्ययनो आना ध्यानमा समावेश थयेल छे, कारण आ श्रीसिद्धचक्रभगवंतनी आराधनामां धर्मप्रासादना मुख्य अंगरूप पायो, भींतो, पाटडातुल्य आराध्य त्रणे तत्त्वोनो समावेश थाय छे.
"तन्नास्ति जगति ध्येय-मन्तर्भवति नात्र यत्। सिद्धचक्रे सन्निविष्टं यस्मात्तत्त्वत्रयं परम् ॥१॥"