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(१५८) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ दर्शि केवलिभगवंतोए आ (ज्ञानादि ४) मार्ग (मोक्षनो रस्तो) प्ररूप्यो छे ॥१॥
नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा ॥ एय मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सुग्गइं ॥२॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने तप ए चार स्वरूप मुक्तिमार्गने अनुसरेला जीवो सद्गति (मोक्ष गति) ने पामे छे. (आ चार हेतुथी मुक्तिमार्ग प्रत्ये थती अनुकूलता).
नाणेण जाणई भावे, सणेण य सदहे ॥
चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई ॥१॥ ज्ञानथी पदार्थोने जाणे छे, दर्शने करी पदाथोंनी श्रझा करे छे. चारित्रेकरी आश्रवस्थानो [कर्मबन्धनकारणो] ने रुंधे छे, तपे करी प्राचीन कर्ममलनी (निर्जरा थवाथी) सर्वथा शुद्ध थाय छे ॥ १ ॥ __इत्यादि अनेक वचनोथी तथा युक्तिविचारोथी चारेमा मुक्तिसाधनता सिद्ध थाय छे. तेमां सम्यग्दर्शन विना व्हाय तेटर्बु (नवपूर्व सुधीनु) ज्ञान पण अज्ञान रूप छे. अखंडधाराये पळातुं चारित्र पण अ