________________
गुणोनु रहस्य अने क्रमविचार ॥ (१५७ ) ग्रहण कर्या छे, आचार्यपदना अधिकारी, शिष्योने सूत्रादि भणावी महान् उपकार करनार विगेरे अनेक. हेतुओथी गच्छचिन्तक श्री उपाध्यायभगवंत चोथे स्थाने ग्रहण कर्या, मोक्षमार्गमा सहायदाता मोक्षमार्गना साधनार साधुभगवंतो पांचमे स्थानके लीधा, आ प्रमाणे पंचपरमेष्ठिरूप गुणीनो क्रमविचार बतावी हवे चार गुणो संबंधी विचारीये.
॥ गुणोनुं रहस्य अने क्रमविचार ॥ पवित्र आत्माना प्रकट थयेला अनन्त गुणो प्रशस्त होवा छतां आचार गुणोनीज मोक्ष प्रत्ये कारणता तथा आ चार मार्गना अवलम्बनीज जीवोने सद्गति प्राप्त थाय छे, इत्यादि कारणोथी श्रीसिद्धचक्र यंत्रमा आ चारने ग्रहण काँ छे. कयुं छे के
नाणं च दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा॥ एस मग्गुत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसीहिं ॥१॥ ज्ञान दर्शन, चारित्र अने तप ए चारज श्रेष्ट