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श्री सिद्धचक्रपदोनो क्रमिकविचार ॥ श्री सिद्धचक्रपदोनो क्रमिकविचार, तेनुं रहस्य,
संख्यामहिमाविचार. आ श्रीसिद्धचक्रना नवपदोमां पांच धर्मी (गुणी) छे अने चार धर्म (गुण) छे “गुणाणमासओ दवं " गुणोनो आश्रय द्रव्य छे एटले के निराधार गुणो होइ शकता नथी, जो के गुणोने लइनेज गुणीनी पूज्यता छे, छतां पण ते गुणोनो आविर्भाव, गुणोनी विशिष्टता गुणि आत्माज करी शके छे. तेमज पूर्वोक्त वचनथी जणाय छे के निराधार गुणो न रही शकवा विगेरे अनेक कारणोथी पहेला पंचपरमेष्ठिरूप गुणीनुं ग्रहण कर्यु छे, आ ज पंचपरमेष्ठि (अरिहंत. सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु) ना नमस्कारमयज सकल श्रुतस्कन्धना नवनीततुल्य अभ्यन्तर वर्तनार पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध छे, श्रीभगवतीजी- आदिमंगल पण तेज छे, प्रणवाक्षर 'ओ' पदे करी योगिओमहात्माओ तेमनुज ध्यान करे छे, ए पांचेना प्रथम