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(१५२) नवपद विधि विगेरे संग्रह ॥ तपपदनुं ध्यान उज्वल वर्णे करवानुं होवाथी चोखाना द्रव्यनुं आयंबिल कर.
आ अन्तिम [छेल्लो] दिवस होवाथी तमाम विधि अप्रमत्तपणे करवी, विशेष पूजा करवी, यथाशक्ति आयंबिलमां पण द्रव्यादि अभिग्रहो राखवा, आज विशेष महोत्सव सहित सत्तर भेदी पूजा भणाववी. विशेष आंगी पूजा, रात्रिजागरण, भावना, प्रभावना विगेरे करवी. "डेल्ले आंबिल मोटो तप कीजे, सत्तरभेदी जिनपूजा
रचीजे, मानवभव लाहो लीजे"
___ पारणाना दिवसनो विधि.
दरेक विधिओमा, विद्यासाधनामा पूर्वसेवा उत्तरसेवाओ होय छे, तेम आ दिवसे परंपराथी श्री सिद्धचक्र महाराजनुं समुदित आराधन कराय छे.. ___ पडिलेहण, देववंदन सुधीनो विधि संपूर्ण पू. वनी माफक करी.