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________________ तपः पदना ५० भेद स्वरुप ॥ (१३९) चतुर्विधं तथा ध्यान ३६ - मुत्सर्गों द्विविध ३८ स्तथा । अष्टात्रिंशदिमे भेदा, स्तपसोऽभ्यन्तरस्य वै ॥४॥ अन्यथाप्यथवा भेदा-स्तपसः परिकीर्तिताः । पञ्चाशत्संख्यया ध्येयाः, निर्जरार्थिमनीषिभिः ॥ अनशनना बे भेद छे, ऊणोदरी बे भेद | वृत्तिसंक्षेपना चार भेद, कायक्लेश [ रसत्याग]छे एक ॥ रसत्याग (कायक्लेश) छे एकविध, संलीनता दुगविध, बाह्य तपना ए का, बारस भेद प्रसिद्ध ॥२॥ प्रायश्चित्त दश भाखीया, सगविह विनय उदार दशविध वेयावच्च छे, सज्झाय पंच प्रकार ॥३॥ ध्यान चतुर्विध जाणीये, उत्सर्गना दोय भेद | अडत्रीश अभ्यन्तर मळी, तप पचास सुभेद ॥४॥ श्री तपः पदना नमस्कारपूर्वक तन्मयतासूचक स्वमासमणना दुहा. कर्म तपावे चीकणा, भावमगंल तप जाण । पचास लब्धि उपजे, जय जय तप गुण खाण ॥
SR No.022958
Book TitleNavpadmay Siddhachakra Aradhan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayodaysuri
PublisherManeklalbhai Mansukhbhai
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size21 MB
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