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स्वयं वचोमय तुम प्रतिपल हो आत्मजगत में सदाचार में ज्योतिपुञ्ज ! तुम अमलचक्षु हो, चकाचौंध में अन्धकार में ॥
[ २ ] ज्योतिपुञ्ज ! तुम अमलचक्षु हो चकाचौंध में अन्कार में स्वयं मुक्ति तुम मुतिदूत हो सत्य-अहिंसा - तपः मूल हो मोहरश्मि - अभिभूत विश्व में ज्ञानलीन चरण- प्रसूत हो
स्फूर्तिमान हो संस्कारों में,
मूर्तिमान हो अनाकार में ।
ज्योतिपुञ्ज ! तुम अचल चक्षु हो, चकाचौंध में अन्धकार में ॥
ઊર્દૂ
विषेश 'राम' भ. मे. वृनवासी
श्ययिता :- गोशाई रूहे ' इन्साँ को फिर ताजगी दी तूने, जिस्मे हेवाँ २ को फिर जिन्दगी दी तूने । ए महावीर तुझ पर तमद्दुन ३ निसार, ४ फिर जहाँ को नई रोशनी दी तूने ॥