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યુગપ્રધાન જિનચંદ્રસૂરિ मधुर सुधारस सम जसु वाणी, (वाणी) ते मुझ मनि अधिक सुहाणी। अखलित ललित अमित गुणखाणी, भलइ भलइ सोपुरिसादाणी॥६॥ वामानंदण नयणाणंदण, कामित दान कलपतरु कंद । निरमम निरमद नइ निरदंद, जयउ जयउ जिणसासण जिणचंद्॥७॥ इति श्रीपार्श्वनाथ लघुस्तवनं, कृतं सवाई जुगप्रधान
श्रीजिनचंदसूरिणा । (राजलाभ लिखितं) १०-शत्रुजयमंडन नाभेयजिन हिंडोलणा गीत । ऐ मेरे जिणवरके हरष हिंडोलणइ, सुकृत हिंडोलणइ सखि
खेलइगी सुंदरी ॥ आंकणी ॥ सुभ भागि सुंदर नत पुरंदर, प्रगुण सुगुण निवास । सिरिनाभिनंदन त्रिजग वंदन, सुजस चंदनवास ॥ सिरि विमल भूधर सबल सिंधुर, खंध हरि संकास । मरुदेवि उर सिरिहंस अकलित, सकल पूरइ आस ॥१॥ ऐ मेरे० । भवभमण विरमण दुरित दरगण, दमण कुसल सुगेह । अति अबल अवर कुतीरथ गिणी, ग्रही परम तीरथ एह ॥ देखतां दरसण नयण विकसति, प्रीति पुलकति देह । पुंडरीक गिरिवरि जयउ जिहां सिरिनाभिनंदन रेह ॥२॥ ऐ मेरे० । इणि शिखरि शिवपुरि सुघरि पहुता, सधर साधु अनेक । तिणि सिद्धक्षेत्र प्रसिद्ध शत्रुजय, पुण्य गुण अ(ति)रेक ॥ निज मुखइ सीमंधर वखाणति, महि महिम सुविवेक। जे करइ विधिसुं जात्र मानव, लहइ ते जस एक ॥३॥ ऐ मेरे० । इहां ज्ञान सहित सुध्यान धरतां, पुण्यतरु अंकूरि । तिरि निरय दुरगति दुरित रुंधइ, मुगति पंथ पडूरि ॥ ए महिम जाणउ जस वखाणउ, करउ पातक दूरि । सिरि रिसह जिणवर चरण सेवक,भणइ जिणचंदसूरि ॥४॥ ऐ मेरे० इति श्रीशत्रुजयगीतं । श्राविका केलि पठनार्थ. शुभं भवतु । (पत्र १ तत्कालीन लिखित. यति मुकनजी संग्रह. बीकानेर)
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