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આચાર્યશ્રી યશોદેવસૂરિજી લિખિત
અભિધાત રાજેન્દ્રકોષ ભાગ-૧તી
પ્રસ્તાવના
वि. सं. २०४२
પર
४. सन् १९८५
श्रीमद् विजय यशोदेवसूरिजी महाराज 'अभिधान राजेन्द्र' और इसके कर्ता के प्र अपना भावोल्लास प्रकट करते हुए लिखते है - आज भी यह ( अभिधान राजेन्द्र ) मेरा निकटतम सहचर है। साधनोके अभावके जमाने में वह जो महान कार्य संपन्न हुआ है, इसका अवलोकन करके मेरा मन आश्चर्य के भावोंसे भर जाता है और मेरा मस्तक इसके कतकि इस भगीरथ पुण्य पुरुषार्थके आगे झुक जाता है। मेरे मनमें उनके प्रति सम्मानका भाव उत्पन्न होता है क्योंकि इस प्रकारके (महा) कोशकी रचना करनेका आद्य विचार केवल उन्हें ही उत्पन्न हुआ और उस विकट समयमें अपने विचार पर उन्होंने अमल भी किया। यदि कोई मुझसे यह पुछे कि जैन साहित्यके क्षेत्रमें बीसवीं सदी की असाधारण घटना कौनसी है, तो मेरा संकेत इस कोशकी ओर ही होता, जो बड़ा कष्ट साध्य एवं अर्थ साध्य है ।