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________________ विद्वानानां नाम अने कामने जेटलं जाणे छे, तेटलं आ भूमिना महापुरुषोनां नाम अने कामने जाणतो नथी; आ एक कमनसीव ने शरमजनक घटना छे। अरे! खुद गुजरातना ज विद्वानो पोताना ज घर आंगणे प्रकली आवी विज्ञ विभूतिने कामथी तो पछी, पण नामथी पण ज्यारे न जाणे, त्यारे आन्तरप्रान्तीय विद्वानोने तो आपणे शुं कही शकीए ? बीजी महादुःखनी बात ए छे के आपणा विद्वानो वीजा धर्मो अंगे सारुं ज्ञान धरावता होय छे, ज्यारे पोताना आंगणे ज रहेला, गुजराती प्रजाना उत्कर्षमां सर्वोत्तम अने अजोड फाळो आपनार जैनधर्म अंगे के तेमना साधुपुरुषो अंगेनुं ज्ञान मेळववामां खूब खूब पछात रह्या छे । अरे, तेओनं घणीवार तो ओरमाया पुत्र जेवुं ज वलण जोवाय छे। हजारो वर्षथी जीवता जैनधर्मना ज्ञानना अभाव गुजरातना शिक्षण विभागमां चालता गुजराती आदि भाषानां पुस्तकोमां, अने अन्य साहित्यमा पण, ज्यां ज्यां भगवान महावीर के जैनधर्म विषे लख्युं छे त्यां त्यां दम विनानुं, छीछरुं लख्युं छे अने केटलीक वार तो धर्मना मर्मनी समजणना अभावे खोटां विधानो करीने अन्याय पण कर्यो छे; जाणेअजाणे खोटी हकीकत रजू थई गई छे । आ वधानां कारणोनी समीक्षानुं आ स्थान नयी, परंतु विद्वानोने मारी सानुरोध प्रार्थना छे के, तेओ ऊंडा ऊत्तरे अने लखवा पहेला जैन विद्वानोनो संपर्क साधी, हकीकतोनी चोकसाई करी पछी लखे, लख्या पछी पण सुयोग्य विद्वानने वतावी पछी मुद्रित करे, तो अन्याय थवा नहीं पाये। आशा राखीए के हवेथी तेओ पोतानी ज्ञानसाधनामां जैन विद्वानो, कविओ अने ग्रन्थकारोने जरूर स्थान आपशे । उपाध्यायजी महाराज ए परमात्मा महावीरदेवना एक साचा अने शिस्तपालक सैनिक हता, अनेक गच्छो, संप्रदायो अने मतभेदोना मोजांओथी धूधवता जैनशासनसागरमां तोफाने चढेली धर्मनौकाना ए साचा सुकानी हता । उपाध्यायजी महाराजे पोताना जीवननां बधांय वर्षो, जीवननुं सघलुं सुख, जीवननी तमाम कमाई जैनशासनने अर्पण करी दीधां हतां । जीवनना अन्तिम वर्ष सुधी साहित्यसर्जन, शासनसेवा अने धर्मरक्षाना श्वास लेना ए वीर पुरुष आपणी समक्ष सेवा, स्वार्पण अने पुरुषार्थनो आदर्श नमूनो मूकता गया छे। शासनमां वुद्धिमानो घणा पाके छे, परंतु कर्त्तव्यपरायणो अने नव्य सर्जको गण्यागांठ्या ज पाके छे । उपाध्यायजी एक सर्जक अने क्रान्तिकारी पुरुष हता, तेथी तेओश्रीए भारे बलिदानो- आत्मभोग अने मुश्केलीथी मेलवेल सिद्धिओने टकावी राखवा अपूर्व साहित्य सर्जन कर्यु; ए साहित्यनुं अध्ययन, अध्यापन ने प्रचार काय ए माटे श्रीसंघे 'यशोविद्यापीठ' जेवी एकाद संस्था उभी करवी जोईए । आजे भौतिक विज्ञान अने राजकारण ए ज जाणे जीवननुं पूर्णविराम होय, एवी भावना अने मान्यता विश्वमां मजबूत थई वेठी छे । वळी, प्रजानुं मानस अनात्मवादी अने झेरी विचारोथी सतत राजाय छे। बीजी बाजु प्रजाना नेताओ अने प्रचारक साधनो तरफथी मात्र भौतिक साधनोनां सर्जन, संवर्धन के विवर्धनमां ज प्रजानी सुख-शांति अने आवादीनी सिद्धिओ समाएली छे - आवी जोरशोरथी थई रहेली व्यापक उद्घोषणाओ द्वारा प्रजाना हृदय अने मगजमां सतत भयंकर विषपात थई रह्यो छे । प्रजा आत्मवाद के अध्यात्मवादना कल्याण मार्गथी दूर सुदूर हडसेलातो जाय छे। आ १४४४४४४४४०४ [ १७६ ] ४४४४४४६ ලය
SR No.022874
Book TitlePrastavana Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherMuktikamal Jain Mohanmala
Publication Year2006
Total Pages850
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size28 MB
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