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आचार्यश्री यशोदेवसूरिजी लिखित
उपाध्यायजी यशोविजयजी स्मृति ग्रन्थनी प्रस्तावना
वि. सं. २०१३
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संपादकीय निवेदन
जयन्तु जिनवराः । नमो उवज्झायाणं ।
४. सन् १८५७
परमाराध्य परमोपास्य, प्रातः स्मरणीय, पूज्यपाद साधुशार्दूल, तार्किकशिरोमणि, न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजना जीवन अने कवनथी संकलित 'न्यायविशारद न्यायाचार्य महोपाध्याय श्री यशोविजय- स्मृतिग्रन्थ' नुं संपादनकार्य सद्भाग्ये मारा शिरे आयुं, अने आजे ते कार्य शासनदेव -- गुरुनी कृपाथी, मित्रमुनिवरो, विद्वानो अने अन्य सहायकोनी शुभेच्छाथी पूर्णाहुतिने पण पाम्युं, ए माटे आनंद थाय छे अने लांबा समयथी सेवेला स्वप्नानो एक भाग आकार ले छे, तेथी संतोष प्रगटे छे ।
रसोई रांधता घणुं घणुं कष्ट अनुभवाय छे, पण ज्यारे ते तैयार थाय छे त्यारे, तेना आनंदमां पूर्वक्रियानुं कष्ट के खेद विसारे पडे छे । एमांय रसोई जो सुंदर, स्वादु अने पक्क बनी होय तो तेनो संतोष अने आनंद कोई जुदो ज होय छे । पण जो रसोई असुंदर, बेस्वादु अने अपक्क बनी होय त्यारे तेनो असंतोष अने खेद रही जाय छे। मारा माटे पण कंईक एवं ज बन्युं छे। प्रारंभथी ज प्रेसना प्रतिकूल संजोगो, खंतीला कार्यकरनो अभाव, एटले काम लंबायुं, चूंथायुं, आशातीत विलंब थतां एनी पाछळ निराशा आवी अने एणे नानोशो कंटाळो पण ऊभो कर्यो, परिणामे आ अंकने अंगे सेवेलुं स्वप्नं पूर्ण आकार न लई शक्युं, तेटलो